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श्री हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र

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श्री हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र

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श्री हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र

श्री हनुमत् सहस्रनाम स्तोत्र का माहात्म्य:-

  • श्री हनुमत् सहस्रनाम स्तोत्र के पाठ से उत्कृष्ट बल,अपरिमित बुद्धि एवं पराविद्या की प्राप्ति होती है।
  • समस्त गृह क्लेशों का निस्तारण  हो जाता है।
  • भूत, प्रेत, एवं अन्य प्रकार  के अरिष्टों का विनाश होता ।
  • इसके पाठ के प्रभाव से के मानवीय गुणों में अभिरुचि का उदय  होता है तथा पापों से निवृत्ति होती है।
  • इस पाठ से विशेष रूप से आत्मशान्ति मिलती है तथा अन्त: करण में निर्मलता की  प्राप्ति होती है।
  • धन-धान्य की अभिवृद्धि होती है तथा साधक का मानसिक तनाव कम होता है।

श्री हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र पाठ प्रयोग या विधि:

  1. स्वस्तिवाचन एवं शान्तिपाठ
  2. प्रतिज्ञा सङ्कल्प
  3. गणपति गौरी पूजन
  4. कलश स्थापन एवं वरुणादि देवताओं का पूजन
  5. पुण्याहवाचन एवं मन्त्रोच्चारण अभिषेक
  6. षोडशमातृका पूजन
  7. सप्तघृतमातृका पूजन
  8. आयुष्यमन्त्रपाठ
  9. सांकल्पिक नान्दीमुखश्राद्ध (आभ्युदयिकश्राद्ध)
  10. नवग्रह मण्डल पूजन
  11. अधिदेवता, प्रत्यधिदेवता आवाहन एवं पूजन
  12. पञ्चलोकपाल,दशदिक्पाल, वास्तु पुरुष आवाहन एवं  पूजन
  13. रक्षाविधान
  14. प्रधान देवता पूजन
  15. पाठ विधान
  16. विनियोग
  17. करन्यास
  18. हृदयादिन्यास
  19. ध्यानम्
  20. स्तोत्र पाठ
  21. पंचभूसंस्कार, अग्नि स्थापन, ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका
  22. आधार-आज्यभागसंज्ञक हवन
  23. घृताहुति, मूलमन्त्र आहुति, चरुहोम
  24. भूरादि नौ आहुति, स्विष्टकृत आहुति, पवित्रप्रतिपत्ति
  25. संस्रवप्राशन, मार्जन, पूर्णपात्र दान
  26. प्रणीता विमोक, मार्जन, बर्हिहोम
  27. पूर्णाहुति, आरती, विसर्जन

 

अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीर वाले दैत्यरूपी वन को ध्वंस करने वाले, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमान् जी हैं। श्रीहनुमान जी महराज एकादश रुद्रावतार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्री हनुमान  जी महराज की विधिवत् आराधना एवं अर्चना करने के लिए श्रीहनुमत् सहस्रनाम स्तोत्र सर्वोत्तम है। हनुमान जी श्री राम जी के अनन्य भक्त हैं। हनुमान जी सर्वदा राम भक्ति में ही लीन रहते हैं । ये ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं अर्थात् मेधाशक्ति  बहुत ही प्रखर है। जो साधक हनुमत् सहस्रनाम का पाठ  विधिवत् करता है या किसी ब्राह्मण द्वारा कराता है, उसके फलस्वरूप हनुमान जी की कृपा से उस साधक की भी मेधा प्रखर हो जाती है, तथा समस्त अरिष्टों से निवृत्ति हो जाती है। भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा समस्त मनोकामनाएं हनुमत् स्तवन् से शीघ्र ही परिपूर्ण हो जाती हैं। हनुमत् आराधना करने से शनि ग्रह जनित कष्टों से भी निवृत्ति होती है। कलियुग में श्री हनुमानजी महाराज प्रत्यक्ष देवता हैं। जहां भी राम कथा होती है वहां निश्चित ही विराजमान रहते हैं। यह स्तोत्र मन्त्र महार्णव में पूर्वखण्ड के नवम तरङ्ग में श्रीरामचन्द्र जी द्वारा कही गयी है

Description

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, अनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।

अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत के समान कान्तियुक्त शरीर वाले दैत्यरूपी वन को ध्वंस करने वाले, ज्ञानियों में अग्रगण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्रीरघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्रीहनुमान् जी हैं। श्रीहनुमान जी महराज एकादश रुद्रावतार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्री हनुमान  जी महराज की विधिवत् आराधना एवं अर्चना करने के लिए श्रीहनुमत् सहस्रनाम स्तोत्र सर्वोत्तम है। हनुमान जी श्री राम जी के अनन्य भक्त हैं। हनुमान जी सर्वदा राम भक्ति में ही लीन रहते हैं । ये ज्ञानियों में अग्रगण्य हैं अर्थात् मेधाशक्ति  बहुत ही प्रखर है। जो साधक हनुमत् सहस्रनाम का पाठ  विधिवत् करता है या किसी ब्राह्मण द्वारा कराता है, उसके फलस्वरूप हनुमान जी की कृपा से उस साधक की भी मेधा प्रखर हो जाती है, तथा समस्त अरिष्टों से निवृत्ति हो जाती है। भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तथा समस्त मनोकामनाएं हनुमत् स्तवन् से शीघ्र ही परिपूर्ण हो जाती हैं। हनुमत् आराधना करने से शनि ग्रह जनित कष्टों से भी निवृत्ति होती है। कलियुग में श्री हनुमानजी महाराज प्रत्यक्ष देवता हैं। जहां भी राम कथा होती है वहां निश्चित ही विराजमान रहते हैं। यह स्तोत्र मन्त्र महार्णव में पूर्वखण्ड के नवम तरङ्ग में श्रीरामचन्द्र जी द्वारा कही गयी है

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